Friday, October 23, 2009

रोज


रोज एक दुनिया लेती है जन्म
और रोज मर जाती है एक दुनिया।
रोज एक हौसला होता है बलंद,
और रोज ही पस्त होता है एक हौसला।
रोज उगती है एक उम्मीद,
और एक उम्मीद रोज दम भी तोड़तीहै।
रोज परवान चढ़ता है एक प्यार का बुखार,
और रोज उतर जाता है एक खुमार प्यार का।
तो ! कौन कहता है कि आयेगी एक दिन कयामत?
कयामत तो होती है रोज, क्यों कि -
रोज ही मरता है एक आदमी,
रोज उजड़ जाती है दुनिया किसी की,
किसी का हौसला,किसी कि उम्मीद, किसी का प्यार।
कोई नही आता है काम,
न कोई रहबर , न मसीहा, न सरकार।
फिर भी....
एक आदमी होता है फिर पैदा,
और जग जाती है,
एक उम्मीद, एक हौसला,एक प्यार।

Thursday, October 15, 2009

मै ही तुम्हारे प्यार के काबिल नही !

कल ही एक ग़जल कही जो आप सब की नजर है।

...........
उसकी बातों मे कहीं कुछ इल्म का गुमान है.,
ये कोई बाजीगरी है सबको ये इमकान है.!
वो किसी से पूछ कर चलता नहीं था रास्ते.,
फ़िर कहां से पाई मंजिल हर कोई हैरान है!
अब के बारिश में बरसती आ रही है उसकी याद.,
सर पे कोई छ्त पडी है इस बात से अनजान है!
मै ही तुम्हारे प्यार के काबिल नही था दोस्तों।,
इतनी ही सच्चाई है बस बाकी सभी इल्जाम है!
अब अमीरी का खयाल आता नही है क्या करें।.
खल्क की ख्वाइश सभी है औ साथ में ईमान है!
अब के जब भी वो मिलेगा मै लगाउंगा गले ।.
ये कोई ख्वाइश नहीं है बस जरा एहसान है !