Wednesday, August 4, 2010

मुझे प्यार है तुमसे और नफरत भी

                                           आखिर क्यों लिखता हूँ मै ?
मै लिखता हूँ , की मुझे प्यार है तुमसे और नफरत भी .
मै लिखता हूँ , की यही मुसीबत   है मेरी और मसर्रत भी  .
मै लिखता हूँ , की कोई बेचैन सी खलिश चीरती है मुझे
और कोई अनजाना सा दर्द पुकारता है ,
मुझमे जगता है एक दीवानगी का सुरूर
और बुझ जाता है मेरे अन्दर वजूद का गुरुर
मै लिखता हूँ , की यही काम है मेरा और फितरत भी
.मै लिखता हूँ , की मुझे प्यार है तुमसे और नफरत भी

मै लिखता हूँ , की वो सुबह अभी तक आई नहीं है ,
और ख़याल में वो गहराई नहीं है .
की एक बच्चा बेचता है सड़क पर अख़बार
और घर में पड़ी है उसकी माँ बीमार
मै लिखता हूँ, की यही इल्जाम है मेरा और शोहरत भी
मै लिखता हूँ , की मुझे प्यार है तुमसे और नफरत भी
    मै लिखता हूँ , की इंसानियत का हक़ अदा नहीं है ,
    और हवाओं में प्यार की सदा नहीं है .
    की कमीज से पेट आज भी ढक लिए जाते है
    और मासूम आज भी भूख से चिल्लाते है
    मै लिखता हूँ , की यही तंज है मेरा और उलफ़त भी
    मै लिखता हूँ , की मुझे प्यार है तुमसे और नफरत भी

    मै लिखता हूँ , की आशिकी में ईमानदारी नहीं है
    और हुस्न में अब वो चिंगारी नहीं है
    की टूट गई है किसी माँ की आस
    और खुदा से उठ गया है आदमी का विश्वास
    मै लिखता हूँ , की यही इज्जत है मेरी और तोहमत भी
    मै लिखता हूँ , की मुझे प्यार है तुमसे और नफरत भी

    मै लिखता हूँ, की , हर चेहरे पर पोशीदा एक इल्जाम है,
    और मेरे हाथ में बस एक खाली जाम है .
    की बरसती आ रही है जमीन पर दोजख की आग ,
    और उभर आया है धरती के सीने का दाग .
    मै लिखता हूँ , की यही अजमत है मेरी और किस्मत भी ,
    मै लिखता हूँ , की मुझे प्यार है तुमसे और नफरत भी

    मै लिखता हूँ  कि , मुझे बेचैन करती है  राजनीति की मक्कारी .
                              और फिर झूठ लगती है मुझे मसीहा की वादाकारी
                              कि अब टूट चुका है पिता से किया वादा
                             और झुक जाता है सत्ता के सामने  नेक इरादा
    मै लिखता हूँ कि यही जुनू है मेरा और वहशत भी 
                                                       मै लिखता हूँ कि मुझे प्यार है तुमसे और नफ़रत भी .

    मै लिखता हूँ कि , कि अभी उम्मीद मेरी टूटी नहीं है
                             और बच्चों कि मुस्कान अभी झूठी नहीं है
                            कि उठते है आज भी हवाओं में विरोध के स्वर ,
                             और एक बेजान दिल पर हो रहा है मुहब्बत का असर .
    मै लिखता हूँ कि , बाकी है एक  ख्वाहिश  मेरी और एक  हसरत भी
    मै लिखता हूँ कि मुझे प्यार है तुमसे और नफ़रत भी .

    Thursday, July 15, 2010

    शेर की खाल उतार कर कुत्ता हो जाऊं


    तुम कैसे जिन्दा रहते शेर .
    जब सामने तुम्हारे आदमी था सवा शेर .
    काश तुम बन सकते कुत्ते
    तो लोग तुम्हे गोद में लिए फिरते .
    काश तुमने छोड़ दिया होता जंगल का अधिकार
    तो शायद आदमी करता तुमसे भी प्यार .
    देखो कुत्तो को !. दुलराये जाते हैं ,सहलाये जाते हैं ,
    सुन्दरियों के गोद में इतराए जाते है ,
    आखिर किस गुमान में हो तुम ................!
    आदमियों में भी जो थे शेर ,
    सब कर दिए गए है ढेर .
    अब बस कुत्तो की ही प्रजाति कायम है ,
    शेर बनना आजकल जरायम है ,
    सब कर रहे है अपने अन्दर के शेर को शूट
    और, श्वान बनाये जाने के खुल रहे हैं दनादन इंस्टिट्यूट .
    अब मै भी सोचता हूँ खुद को समझाऊ , और
    शेर की खाल उतार कर कुत्ता हो जाऊं




    *दुनिया मे कम होते शेरों के प्रति .

    Tuesday, February 2, 2010

    कहां हैं नाज़ी



    तब एक कविता पढी थी.....................
    पहले नाज़ी आये कम्युनिस्टों के लिये,
    फ़िर यहूदियों के लिये,
    फ़िर ट्रेड यूनियनों के लिये,
    फ़िर कैथोलिकों के लिये,
    फ़िर प्रोटेस्टेन्टो लिये...........
    पर अब नाज़ी नही है .
    वो घुस गये हैं हर किसी में,
    कम्युनिस्टों में,ईसाइयों में, हिन्दुओं में,
    मुस्लिमों में और यहूदियों मे.
    और खा रहें हैं सब के अन्दर की..,
    इन्सानियत, दोस्ती और प्यार,
    पर सबके चेहरे पर चस्पा है एक इश्तहार,
    जिसमें चमक रहा है...
    "हम एक है " का विचार.