हिंदी सिनेमा के शलाका पुरुष सचिन भौमिक नहीं रहे श्रद्धांजलि. ये विडम्बना ही है की उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार नहीं मिला हलाकि उन्होंने जितनी फिल्मे लिखी है उतना शायद ही विश्व में किसी ने नहीं लिखा हों ., हो सकता है की बहुत सारे लोग उन्हें नहीं जानते हों पर उनकी लिखी फिल्मो को जरूर जानते होंगे . इनमे से आप किनको जानते है ? दादा की लिखी फ़िल्में ----- अनुराधा , लाजवंती , मेम दीदी , छाया , आई मिलन की बेला , मजबूर ,जिद्दी , जानवर , लव इन टोकियो ,आये दिन बहार के , एन इविनिंग इन पेरिस ,ब्रह्मचारी , आराधना , एक श्रीमान एक श्रीमती ,आया सावन झूम के ,तुमसे अच्छा कौन है , .पहचान , आन मिलो सजना , प्रीतम , कारवां , जवाँ मुहब्बत , नया ज़माना , अंदाज , बेईमान , आँखों आँखों में ,जुगनू , राजा रानी , असली नकली , दोस्त , खेल खेल में , झूठा कहीं का , वारंट ,आक्रमण , तुम हसीं मै जवान , ज़िन्दगी , बारूद , ज्योति ,त्रिमूर्ति , भवर , हम किसी से कम नहीं , चलता पुर्जा ,आज़ाद ,तृष्णा , गोलमाल ,क़र्ज़ , दो और दो पाँच , आँचल , ज़माने को दिखाना है ,जेल यात्रा , आस पास , ज़लज़ला , नरम गरम , बेमिसाल , नास्तिक , किसी से न कहना , अच्छा बुरा , ज़मीन आसमान , अन्दर बाहर , करिश्मा , जागीर , मंजिल मंजिल , साहब , फासले , ज़बरदस्त , कर्मा, एक से भले दो , झूठी , आप के साथ , नामुमकिन , क़ानून अपना अपना , आग से खेलेंगे , सौदागर , दुश्मन देवता , दीदार , निश्चय , ज़ख़्मी दिल ,ये दिल्लगी , मै खिलाडी तू अनाड़ी , इक्के पे इक्का , चाँद का टुकड़ा , अमानत , करन अर्जुन , साजन की बाहों में , दरार , दस्तक , आतंक , अचानक , कोयला , सोल्जर , कीमत ,, झूठ बोले कौवा काटे , दुश्मन , आंटी नंबर वन , आ अब लौट चलें , ताल , कारोबार , कृष्णा , युवराज , कई मिल गया , दो दिल , धन दौलत ,शरारा , आग का दरिया , अफसाना , नाटक , कन्यादान , वचनवद्ध , गीतांजलि , ड्रीमगर्ल , सड़क छाप , खलनायिका , प्यार के काबिल , हमला , गुरुदेव , सनम बेवफा , बीवी और मकान , विजय , विधाता , ब्लैक एंड वाईट , छोटी सी मुलाक़ात , थिलू मुलु , क्रिश ( १२3 फिल्मे ) ............ कुछ और भी है जो मुझे याद नहीं आ रही है , अगर आप को याद हों तो मुझे बताये
BADFAITH
Tuesday, April 19, 2011
Wednesday, August 4, 2010
मुझे प्यार है तुमसे और नफरत भी
आखिर क्यों लिखता हूँ मै ?
मै लिखता हूँ , की मुझे प्यार है तुमसे और नफरत भी .
मै लिखता हूँ , की यही मुसीबत है मेरी और मसर्रत भी .
मै लिखता हूँ , की कोई बेचैन सी खलिश चीरती है मुझे
और कोई अनजाना सा दर्द पुकारता है ,
मुझमे जगता है एक दीवानगी का सुरूर
और बुझ जाता है मेरे अन्दर वजूद का गुरुर
मै लिखता हूँ , की यही काम है मेरा और फितरत भी
.मै लिखता हूँ , की मुझे प्यार है तुमसे और नफरत भी
मै लिखता हूँ , की वो सुबह अभी तक आई नहीं है ,
और ख़याल में वो गहराई नहीं है .
की एक बच्चा बेचता है सड़क पर अख़बार
और घर में पड़ी है उसकी माँ बीमार
मै लिखता हूँ, की यही इल्जाम है मेरा और शोहरत भी
मै लिखता हूँ , की मुझे प्यार है तुमसे और नफरत भी
मै लिखता हूँ , की वो सुबह अभी तक आई नहीं है ,
और ख़याल में वो गहराई नहीं है .
की एक बच्चा बेचता है सड़क पर अख़बार
और घर में पड़ी है उसकी माँ बीमार
मै लिखता हूँ, की यही इल्जाम है मेरा और शोहरत भी
मै लिखता हूँ , की मुझे प्यार है तुमसे और नफरत भी
मै लिखता हूँ , की इंसानियत का हक़ अदा नहीं है ,
और हवाओं में प्यार की सदा नहीं है .
की कमीज से पेट आज भी ढक लिए जाते है
और मासूम आज भी भूख से चिल्लाते है
मै लिखता हूँ , की यही तंज है मेरा और उलफ़त भी
मै लिखता हूँ , की मुझे प्यार है तुमसे और नफरत भी
मै लिखता हूँ , की आशिकी में ईमानदारी नहीं है
और हुस्न में अब वो चिंगारी नहीं है
की टूट गई है किसी माँ की आस
और खुदा से उठ गया है आदमी का विश्वास
मै लिखता हूँ , की यही इज्जत है मेरी और तोहमत भी
मै लिखता हूँ , की मुझे प्यार है तुमसे और नफरत भी
मै लिखता हूँ, की , हर चेहरे पर पोशीदा एक इल्जाम है,
और मेरे हाथ में बस एक खाली जाम है .
की बरसती आ रही है जमीन पर दोजख की आग ,
और उभर आया है धरती के सीने का दाग .
मै लिखता हूँ , की यही अजमत है मेरी और किस्मत भी ,
मै लिखता हूँ , की मुझे प्यार है तुमसे और नफरत भी
मै लिखता हूँ कि , मुझे बेचैन करती है राजनीति की मक्कारी .
और फिर झूठ लगती है मुझे मसीहा की वादाकारी
कि अब टूट चुका है पिता से किया वादा
और झुक जाता है सत्ता के सामने नेक इरादा
मै लिखता हूँ कि यही जुनू है मेरा और वहशत भी
मै लिखता हूँ कि मुझे प्यार है तुमसे और नफ़रत भी .
मै लिखता हूँ कि , कि अभी उम्मीद मेरी टूटी नहीं है
और बच्चों कि मुस्कान अभी झूठी नहीं है
कि उठते है आज भी हवाओं में विरोध के स्वर ,
और एक बेजान दिल पर हो रहा है मुहब्बत का असर .
मै लिखता हूँ कि , बाकी है एक ख्वाहिश मेरी और एक हसरत भी
मै लिखता हूँ कि मुझे प्यार है तुमसे और नफ़रत भी .
Thursday, July 15, 2010
शेर की खाल उतार कर कुत्ता हो जाऊं
तुम कैसे जिन्दा रहते शेर .
जब सामने तुम्हारे आदमी था सवा शेर .
काश तुम बन सकते कुत्ते
तो लोग तुम्हे गोद में लिए फिरते .
काश तुमने छोड़ दिया होता जंगल का अधिकार
तो शायद आदमी करता तुमसे भी प्यार .
देखो कुत्तो को !. दुलराये जाते हैं ,सहलाये जाते हैं ,
सुन्दरियों के गोद में इतराए जाते है ,
आखिर किस गुमान में हो तुम ................!
आदमियों में भी जो थे शेर ,
सब कर दिए गए है ढेर .
अब बस कुत्तो की ही प्रजाति कायम है ,
शेर बनना आजकल जरायम है ,
सब कर रहे है अपने अन्दर के शेर को शूट
और, श्वान बनाये जाने के खुल रहे हैं दनादन इंस्टिट्यूट .
अब मै भी सोचता हूँ खुद को समझाऊ , और
शेर की खाल उतार कर कुत्ता हो जाऊं
*दुनिया मे कम होते शेरों के प्रति .
Tuesday, February 2, 2010
कहां हैं नाज़ी
तब एक कविता पढी थी.....................
पहले नाज़ी आये कम्युनिस्टों के लिये,
फ़िर यहूदियों के लिये,
फ़िर ट्रेड यूनियनों के लिये,
फ़िर कैथोलिकों के लिये,
फ़िर प्रोटेस्टेन्टो लिये...........
पर अब नाज़ी नही है .
वो घुस गये हैं हर किसी में,
कम्युनिस्टों में,ईसाइयों में, हिन्दुओं में,
मुस्लिमों में और यहूदियों मे.
और खा रहें हैं सब के अन्दर की..,
इन्सानियत, दोस्ती और प्यार,
पर सबके चेहरे पर चस्पा है एक इश्तहार,
जिसमें चमक रहा है...
"हम एक है " का विचार.
Tuesday, December 29, 2009
मुर्दों से खेलते हो बार-बार किस लिए,
पिछले दिनों ब्लॉग पर धर्म को लेकर बड़ा विवाद रहा .कुछ लोगों ने एक दूसरे के धर्म को नीचा दिखाने की पुरजोर कोशिश की.जिसका कोइ औचित्य नहीं था .सच्चाई तो ये है की आज के वैज्ञानिक और तार्किक युग में कोइ भी धर्म अपने मूल रूप में सत्य साबित नहीं हो सकता.कोइ भी धर्म उतना ही सत्य है जितना की दूसरा.और कोइ भी धर्म उतना ही असत्य है जितना की दूसरा। हलांकि हम इससे भी इनकार नहीं कर सकते की मानवता के इतिहास में धर्मो ने भी अपनी एक विशिष्ट भूमिका निभाई है। सभी ने अपने अपने हलकों में एक बहुत बड़े वर्ग को एक जैसा सोचने और समझने की समझ दी है.पर ये भी सत्य है की धर्मों की एतिहासिक भूमिका के अनेक पृष्ठ मानवता के रक्त से रंजित है.मानवता की मुक्ति का आश्वासन देने वाले सभी धर्म आज मानवता की बेड़िया बने हुए हैं। हजारों साल पहले जो बाते सोची गईं थी । उनपर संशय करना आज स्वाभाविक ही है। जो भी हो .एक बात तो साफ है की अगर ईश्वर है और मानवता को उसकी आवश्यकता भी है तो उससे जुड़ने के लिए किसी माध्यम , किसी धर्म , किसी प्रणाली की आवश्यकता नहीं है.क्यों की अगर इन माध्यमों की जरूरत इश्वर को है तो फिर वो इश्वर कैसा है? और अगर मानवता को है तो भी इल्जाम खुदा पर ही जाता है।
तो फिर मेरी दोस्तों से गुजारिश है की भविष्य की तरफ देखें अतीत की तरफ नहीं, आखिर
मुर्दों से खेलते हो बार-बार किस लिए,
करते नहीं हो खुद पे एतबार किस लिए .
Friday, October 23, 2009
रोज
रोज एक दुनिया लेती है जन्म
और रोज मर जाती है एक दुनिया।
रोज एक हौसला होता है बलंद,
और रोज ही पस्त होता है एक हौसला।
रोज उगती है एक उम्मीद,
और एक उम्मीद रोज दम भी तोड़तीहै।
रोज परवान चढ़ता है एक प्यार का बुखार,
और रोज उतर जाता है एक खुमार प्यार का।
तो ! कौन कहता है कि आयेगी एक दिन कयामत?
कयामत तो होती है रोज, क्यों कि -
रोज ही मरता है एक आदमी,
रोज उजड़ जाती है दुनिया किसी की,
किसी का हौसला,किसी कि उम्मीद, किसी का प्यार।
कोई नही आता है काम,
न कोई रहबर , न मसीहा, न सरकार।
फिर भी....
एक आदमी होता है फिर पैदा,
और जग जाती है,
एक उम्मीद, एक हौसला,एक प्यार।
Thursday, October 15, 2009
मै ही तुम्हारे प्यार के काबिल नही !
कल ही एक ग़जल कही जो आप सब की नजर है।
...........
उसकी बातों मे कहीं कुछ इल्म का गुमान है.,
ये कोई बाजीगरी है सबको ये इमकान है.!
वो किसी से पूछ कर चलता नहीं था रास्ते.,
फ़िर कहां से पाई मंजिल हर कोई हैरान है!
अब के बारिश में बरसती आ रही है उसकी याद.,
सर पे कोई छ्त पडी है इस बात से अनजान है!
मै ही तुम्हारे प्यार के काबिल नही था दोस्तों।,
इतनी ही सच्चाई है बस बाकी सभी इल्जाम है!
अब अमीरी का खयाल आता नही है क्या करें।.
खल्क की ख्वाइश सभी है औ साथ में ईमान है!
अब के जब भी वो मिलेगा मै लगाउंगा गले ।.
ये कोई ख्वाइश नहीं है बस जरा एहसान है !
...........
उसकी बातों मे कहीं कुछ इल्म का गुमान है.,
ये कोई बाजीगरी है सबको ये इमकान है.!
वो किसी से पूछ कर चलता नहीं था रास्ते.,
फ़िर कहां से पाई मंजिल हर कोई हैरान है!
अब के बारिश में बरसती आ रही है उसकी याद.,
सर पे कोई छ्त पडी है इस बात से अनजान है!
मै ही तुम्हारे प्यार के काबिल नही था दोस्तों।,
इतनी ही सच्चाई है बस बाकी सभी इल्जाम है!
अब अमीरी का खयाल आता नही है क्या करें।.
खल्क की ख्वाइश सभी है औ साथ में ईमान है!
अब के जब भी वो मिलेगा मै लगाउंगा गले ।.
ये कोई ख्वाइश नहीं है बस जरा एहसान है !
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