Tuesday, February 2, 2010

कहां हैं नाज़ी



तब एक कविता पढी थी.....................
पहले नाज़ी आये कम्युनिस्टों के लिये,
फ़िर यहूदियों के लिये,
फ़िर ट्रेड यूनियनों के लिये,
फ़िर कैथोलिकों के लिये,
फ़िर प्रोटेस्टेन्टो लिये...........
पर अब नाज़ी नही है .
वो घुस गये हैं हर किसी में,
कम्युनिस्टों में,ईसाइयों में, हिन्दुओं में,
मुस्लिमों में और यहूदियों मे.
और खा रहें हैं सब के अन्दर की..,
इन्सानियत, दोस्ती और प्यार,
पर सबके चेहरे पर चस्पा है एक इश्तहार,
जिसमें चमक रहा है...
"हम एक है " का विचार.