रोज एक दुनिया लेती है जन्म
और रोज मर जाती है एक दुनिया।
रोज एक हौसला होता है बलंद,
और रोज ही पस्त होता है एक हौसला।
रोज उगती है एक उम्मीद,
और एक उम्मीद रोज दम भी तोड़तीहै।
रोज परवान चढ़ता है एक प्यार का बुखार,
और रोज उतर जाता है एक खुमार प्यार का।
तो ! कौन कहता है कि आयेगी एक दिन कयामत?
कयामत तो होती है रोज, क्यों कि -
रोज ही मरता है एक आदमी,
रोज उजड़ जाती है दुनिया किसी की,
किसी का हौसला,किसी कि उम्मीद, किसी का प्यार।
कोई नही आता है काम,
न कोई रहबर , न मसीहा, न सरकार।
फिर भी....
एक आदमी होता है फिर पैदा,
और जग जाती है,
एक उम्मीद, एक हौसला,एक प्यार।
20 comments:
अखिलेश जी बहुत दिनों एक बेहतरीन कविता आपके माध्यम से पढ़ने को मिली,वो कहते हैं न अपने नज़ीर अकबराबादी.....
"सब ठाठ पड़ा रह जाएगा जब लाद चलेगा बंजारा"
पता नही एक दिन में क्या क्या परवान चढ़ता है, फिर भी रहती हैं ये दुनियाँ !!!!
अखिलेश जी आप का जवाब नहीं आप ने तो ब्रम्ह भेद खोल दिया ,साथ आप का पुराना पोस्ट याद आता है "कौन सच मानता है"!
रोज उजड़ जाती है दुनिया किसी की,
किसी का हौसला,किसी कि उम्मीद, किसी का प्यार।
कोई नही आता है काम,
जग जाती है,
एक उम्मीद, एक हौसला,एक प्यार।
बेहद दिलचस्प अंदाजे बयां
रोज एक दुनिया लेती है जन्म
और रोज मर जाती है एक दुनिया।
रोज एक हौसला होता है बलंद,
और रोज ही पस्त होता है एक हौसला।
रोज उगती है एक उम्मीद,
और एक उम्मीद रोज दम भी तोड़तीहै।
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना, हर पंक्ति बेहतरीन बन पड़ी है, बधाई ।
बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने ! मेरे इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
रोज उगती है एक उम्मीद,
और एक उम्मीद रोज दम भी तोड़तीहै।
achi abhivykti
akhilesh jee,
Mai aur mera parivar apki likhne kee pratibha see parichit hai,apke kawita suchai kee kafi najdeek hoote hai, Ishi tarah achhi kawita likh tee rahiye,
shashank chaturvedi
akhilash Jee,
roj parwan charta hai ake payar kaa bukhar aur roj uttar jata hai payar kaa bukhar,
ye line her insan kee sath jura hua hai, Roj hee marta hai ek admi such hai ake hee din mee jindagi kee rashtee per kafi uttar charave hoota hai,Ishmee Insan Kai bar mar ker jita hai,
Meera
bahut achhi aur marmsparshi rachana hai apki urdu ke alfazon ne inko aur bhi khoobsurat bna diya hai.
bahut sahi kaha hai..badhai aapko.
तूफानों से लड़ती है कश्ती कि कोई मझधार है
किसी का प्यार और विशवास बना पतवार है
साँसों कि डोरी , ममता का बंधन
क़यामत तक ही है जीवन
सांसारिक नदिया के आर या पार है
कयामत तो होती है रोज,.....
bilkul sach, waqt to har pal karwaten leta hai
क्या बात है..बेहद खूबसूरत कविता..और भाव..एक डायरी की तरह..जिसमे बस एक ही पन्ना है..और बार-बार पलटा जाता है.फिर-फिर पढ़ने का दिल करता है!!!!
अखिलेश जी बहुत बढ़िया... क्योंकि एक उम्मीद पर ही तमाम दुनिया कायम है।
इसी जिजीविषा से ही तो मानुष कहाँ से कहां आ पहुंचा !
सुंदर रचना..... निरन्तरता बनाए रखें..
bahut khoob , bahut sunder abhivyakti.
पब्लो पिकासो की गुएर्निका को पोस्ट कर आपने दिल जीत लिया, हिट्लर के खिलाफ पूरे साहस के साथ सामने आयी थी ये पेंटिंग... आपकी कविता अच्छी है, ढ़ेर सारी निराशाओं के जिक्र के बाद उम्मीद का एक छोटा सा झरोखा... हम सब जिसे बड़ा करने को तत्पर रहे तो उम्मीद है....
sahi hai hum roj mar kar phir janam lete hai....girte hai phir bhi chalna to nahi chodete....bahut hi acchi poem
bahut umda....subhan allah!
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