कौन सच मानता है ?
तुमने माना कि वो ईश्वर का बेटा है,
तुमने माना कि वो ख़ुदा का दूत है,
तुमने माना कि वो पैगम्बर है ,
तुमने माना कि वो शास्ता है,अवधूत है ,
तुमने माना कि वहां स्वर्ग है जन्नत है ,
तुमने माना कि वहां दोज़ख में आग है ,
तुमने माना कि मरना कपड़ा बदलना है ,
तुमने माना कि आख़िर में इन्साफ है ,
तुमने माना कि तुम ख़ास हो,सब आम है
तमने माना कि जिंदगी भी जाम है ,
तुमने माना जो तुम्हारा है अच्छा,दूसरा ख़राब है
तुमने माना कि जो दुनियाँ है वो ख्वाब है ,
तुमने माना कि इसमें कुछ तो है जो सच्चा है ,
पर मुझे नहीं मालूम कि एक आदमी दूसरे से कैसे अच्छा है ,
तो !
तुमको मालूम है जन्नत की हकीक़त , लेकिन
दिल को बहलाने को तुम्हारा ये ख्याल अच्छा है
18 comments:
अच्छा आगाज़ है साहेब! फ़कीरों का सा!
खु़शामदीद!
विमल वर्मा के दिए गए लिंक से यहां तक पहुंची .. अच्छी लगी आपकी रचना .. स्वागत है आपका .. शुभकामनाएं।
तुमने माना जो तुम्हारा है अच्छा,दूसरा ख़राब है
तुमने माना कि जो दुनियाँ है वो ख्वाब है ,
तुमने माना कि इसमें कुछ तो है जो सच्चा है ,
पर मुझे नहीं मालूम कि एक आदमी दूसरे से कैसे अच्छा है ,
सुन्दर भाव, अच्छी कविता
आपका वीनस केसरी
बेहतर व विचारवान कविता। शुभकामना स्वीकार करें।
आपकी रचना बहुत अच्छी लगी.....शुभकामनायें.
गुलमोहर का फूल
विमल जी के लिंक ने यहाँ पहुँचा दिया । एक सार्थक और सुन्दर रचना पढ़ने को मिल गयी ।
सुन्दर! स्वागत। लिखते रहें।
सही.सातत्य रखिएगा.
swagat hai blog jagat me .... bhav ke saath shabdon me aur khele padhne me majaa aayega...
arsh
सब कुछ तो मानने पर ही निर्भर है बन्धु...! हम तो आपको ही कुछ मानकर यहाँ आ गये। अच्छा है।
hum jo kehte hai...US ke bare mein...to US HAKIKAT KI NAHI...US JANNAT KI NAHI ...sirf apni khabar dete hai....ki hum kon hai kya hai....VO JO HAKIKAT HAI....VO HANSTA HAI....hamari is garvili dil-behlai par....
आस्था या दुरास्था जो भी कहिये, शायद इसी बहाने लोग अच्छा काम करते हैं ( जन्नत के डर से ही सही )
अच्छा लगा लिखते रहिये
हिन्दी चिट्ठाजगत में स्वागत है।
आप सब का आभार . आभार इसलिये कि आप सबने अपने बीच मुझे बर्दास्त किया . मेहरबानी. एक मित्र ने मुझसे पूछा है
आखिर क्या है बैड्फ़ेथ ? बैड्फ़ैथ अपने आप से ही बोला गया झूठ है.अपने आप को दिया गया फ़रेब है , धोखा है. ऐसी आत्म्प्रवन्चना है जिसमे आदमी खुद की जिम्मेदारियो से पलायन का बहाना ढूढता है. .एक दुराग्रह है जो अस्तित्व की अन्य सम्भावनाओ से इन्कार करता है’.बैड्फ़ेथ’ जिसके हम सभी शिकार है.
well it was a deep thought Akhilesh Ji. Its strange in a way that it has an optimism attached to it which is so true. i Would look forward to your next creation. Regards Himanshu Shukla
hum dhokhe me he jeene ke aadi hai,par khud se itni muhabbat hai k इल्जाम किसी और के सर जाये तो अच्छा.
Aap ka ye post darshan ke kai shikharo ki yaatra karwata hai.
शुभकामनायें.
namaskar mitr,
aapki saari posts padhi , sab ki sab behatreen hai .. aapki posts me jo bhaav hai ,wo bahut hi gahre hai ..
aapko badhai .. zindagi ke falsafe ke upar likhi gayi ye kavita acchi lagi ..
dhanywad.
meri nayi kavita " tera chale jaana " aapke pyaar aur aashirwad ki raah dekh rahi hai .. aapse nivedan hai ki padhkar mera hausala badhayen..
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
aapka
Vijay
akhilesh jI apke blog ka naam aur kathy dono achchha hai...aise hi likhte rahein.
Post a Comment