तो फिर एक चुनाव खत्म हुआ और एक सरकार बन गई. कॉग्रेस क्यों जीती और बीजेपी क्यों हारी इस पर अनेक विशलेषण
आ रहें है , और आएंगे भी. पर जहां तक कम्युनिस्ट भाइयों का सवाल है , मुझे जार्ज बर्नाड शॉ कि एक बात याद आती है. शॉ ने एक बार कहा था कि अगर आप चालिस साल के पहले कम्युनिस्ट नही है तो आप के पास दिल नही है. और अगर आप ४० के बाद भी कम्युनिस्ट बने हुए है तो आपके पास दिमाग नही है. जहां तक मै जानता हुं कम्युनिस्ट पाटी के सभी नेता ४० के उपर ही है . शॉ ने एसा क्यों कहा ? अगर आप की समझ में आए तो मुझे भी बताइये . इन्तजार रहेगा
आ रहें है , और आएंगे भी. पर जहां तक कम्युनिस्ट भाइयों का सवाल है , मुझे जार्ज बर्नाड शॉ कि एक बात याद आती है. शॉ ने एक बार कहा था कि अगर आप चालिस साल के पहले कम्युनिस्ट नही है तो आप के पास दिल नही है. और अगर आप ४० के बाद भी कम्युनिस्ट बने हुए है तो आपके पास दिमाग नही है. जहां तक मै जानता हुं कम्युनिस्ट पाटी के सभी नेता ४० के उपर ही है . शॉ ने एसा क्यों कहा ? अगर आप की समझ में आए तो मुझे भी बताइये . इन्तजार रहेगा
8 comments:
ha....ha....ha,,,.ha
bahut sahi
जार्ज बर्नाड शॉ jaisa shakhs agar kuchh kahega to sahi hi kahega.
bhai waah!
kya khoob kahi.................
badhai!
जोर्ज साहब की लेखनी तो बहुत निराली थी. बड़े बड़े विषयों को वह इस अनूठे अंदाज़ में कह देते थे कि सांप भी मर जाता था, और आपके हाथों में लाठी भी नहीं दिखती थी.
बहुत सारे कोतेशेन याद आ गए, धन्यवाद!
आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
लिखते रहिये
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी
narayan narayan
@ संगीताजी आपका धन्यवाद,शुभकामनाओं के लियेशब्दों के लिये भी.शुक्रिया उनका भी जो आये ,पढे , गुने और आपके उदार , मुस्कराये और बिना कुछ कहे ही चले गये.
विजयी पार्टी में
मान-मन्नौवल और हारी पार्टी में सिर- फुटौवल चलता रहेगा! रही बात कम्युनिस्टों
की तो ये बुद्धिजीवी लोग विकास के बारे में जरा कम सोचते हैं !
अब इस देश का तो कह नहीं सकते हैं, लेकिन वैचारिक प्रतिबद्धता की मिसाल देखनी है तो जरा सार्त्र को देख लें, बेचारे व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात करते-करते मार्क्सवाद के दल-दल में फँस गए और फिर ऐसे फँसे कि निकल ही नहीं पाए... सवाल ये है कि क्या मार्क्सवाद इतनी बुरी शै है....यदि है तो फिर इस दुनिया में जहाँ विचारधारा के अंत की ही घोषणा की जा चुकी है, शेष रहा पूँजीवाद पूरी तरह से निरापद है....मुझे तो नहीं लगता... आप बताएँ।
Post a Comment