Thursday, October 15, 2009

मै ही तुम्हारे प्यार के काबिल नही !

कल ही एक ग़जल कही जो आप सब की नजर है।

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उसकी बातों मे कहीं कुछ इल्म का गुमान है.,
ये कोई बाजीगरी है सबको ये इमकान है.!
वो किसी से पूछ कर चलता नहीं था रास्ते.,
फ़िर कहां से पाई मंजिल हर कोई हैरान है!
अब के बारिश में बरसती आ रही है उसकी याद.,
सर पे कोई छ्त पडी है इस बात से अनजान है!
मै ही तुम्हारे प्यार के काबिल नही था दोस्तों।,
इतनी ही सच्चाई है बस बाकी सभी इल्जाम है!
अब अमीरी का खयाल आता नही है क्या करें।.
खल्क की ख्वाइश सभी है औ साथ में ईमान है!
अब के जब भी वो मिलेगा मै लगाउंगा गले ।.
ये कोई ख्वाइश नहीं है बस जरा एहसान है !

7 comments:

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

अब अमीरी का खयाल आता नही है क्या करें।.
खल्क* की ख्वाइश सभी है औ साथ में ईमान है!

सही कहा. बेचारे आम आदमी के लिए आख़िर में यही बचता है.

अजय कुमार said...

वो किसी से पूछ कर चलता नहीं था रास्ते.,
फ़िर कहां से पाई मंजिल हर कोई हैरान है!

ये जो दोनों लाईने है , इस ग़ज़ल की शान है

Arshia Ali said...

इसे ही सच्चा प्यार कहते हैं।
धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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लता 'हया' said...

shukria;
wo kisi se .....hairan hai,accha sher hai.

उम्दा सोच said...

वो किसी से पूछ कर चलता नहीं था रास्ते.,
फ़िर कहां से पाई मंजिल हर कोई हैरान है!

अति विशिष्ठ पंक्ति !

प्रज्ञा पांडेय said...

aap bahut achchha likhate hain . padhakar khushi hui .. apane hi giraate hain nashe man pe bijliyan .. khushvant singh khub samajh gaye honge ..

अपूर्व said...

अब अमीरी का खयाल आता नही है क्या करें।.
खल्क की ख्वाइश सभी है औ साथ में ईमान है!

वाह एक दम कबीर दास जी टाइप सच कह दिया एक दम..सौ फ़ीसदी सॉलिड गोल्ड!!काफ़ी उम्दा लिखते हैं आप..शुभकामनाएं!!