Monday, July 13, 2009

हाय माइकल


माइकल फिर जिन्दा हो गए .कई बार जब जिन्दगी मारती है तब मौत जिन्दा कर देती है .ये मौत ही है जो जिंदगी का गहरा अहसास करती है.अस्तित्व का सबसे गहरा बोध किसी के न होने पर ही होता है.दसियों साल से सन्नाटे में पड़े माइकल तूफ़ान हो गए .पर शायद आखिरी बार !माइकल अपने सैकडो साल जीने के वादे से 50 साल में ही मुकर गए. खूबसूरत होने की चाहत मे उन्होने अपना चेहरा प्रेत जैसा बना लिया था. उन्होने करोडॊ दिलो पर राज किया पर उनकी सम्पति गिरवी पडी थी .अपने काले होने के अभिशाप से वो मुक्त तो हो गये पर अपने रंग से उनको इतना गुरेज था कि बच्चो को अपना डी. एन.ए तक नही दिया. अपनो के सैलाब मे भी वो अकेले थे. क्राइस्ट पर से उनका विश्वास शायद उठ गया था,पर पैगम्बर भी काम न आये.इस्लाम क़बूल करने के कुछ दिनो बाद ही वो दुनिया से कूच करगये
अफ़सोस कि उनकी कला जितनी उचाई पर थी ,उनका जीवन उतने ही गर्त मे था. उनका सुर जितना सच्चा था, उनका जीवन उतना ही बनावटी.इस कहानी का मुजरिम कौन है?. कामयाबी, मकबूलीयात, नशा,या और कुछ ? एक बार फिर तुमने दुनिया को चौका दिया माइकल !पर तुम्हारे हुनर को सलाम!

2 comments:

Udan Tashtari said...

कलाकार की कला से ही साबका रखना होता है और उनकी कला को नमन!!

अजय कुमार said...

किसी शायर ने लिखा है -
बाहर जो देखते हैं ,वो समझेंगे किस तरह !
कितने ग़मों की भीड़ है , इक
आदमी के साथ !!
एक हुनरमंद इंसान को
मेरा सलाम