Friday, August 28, 2009
अपने ही गिराते है नशेमन पर बिजलियाँ !
ये कहाँ आ गए हम यूँ हि साथ साथ चलते ? जसवंत सिह को कुछ ऐसा ही लग रहा होगा .गुजरात में उनकी किताब
पर बैन लगाया गया है । बैन लगाने वाले वही लोग है जो कभी अपने ही थे. इस बैन पर मै आपको वेताल की ही तरह एक कहानी सुनाता हूँ .सत्त्रहवी शताब्दी में फ्रांस में दो महान विचारक थे जिनके विचारों का फ़्रांसीसी क्रांति पर विशेष प्रभाव पड़ा । रूसो और वाल्तेयर । दोनों में कभी नही बनी । दोनों एक दूसरे के कटु आलोचक रहे । पर जब रूसो पर प्रतिबन्ध लगाया गया तो वाल्तेयर पहला व्यक्ति था जिसने रूसो पर बैन का जबरदस्त विरोध किया। उसका विचार था की आप रूसो से असहमत हो सकते है , आप उसके विचारों का विरोध कर सकते है ,पर आप उसकी जबान नही बंद कर सकते। विचारों पर प्रतिबन्ध नही लगाया जा सकता...............................अब वेताल की ही तरह मेरा आपसे प्रश्न है की वाल्तेयर ने अपने विरोधी की स्वतंत्रता के लिए लडाई क्यों लड़ी ? और क्या हम अभी भी अपनी सोच में सतरहवी शताब्दी से भी पीछे है? बी जे पी सोच रही है .... चलो अच्छा हुआ अपनों में कोई गैर तो निकला । और जसवंत सिह सोच रहे है, " की अपने ही गिराते है नशेमन पर बिजलियाँ ". और आप क्या सोचते है?
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6 comments:
सच हा अपने ही गिराते है नशेमन पे बिजलियाँ ...
किसी के विचार तथ्य से परे
या तथ्यपरक हो सकते हैं !
इन बातों पर बहस हो सकते
हैं , लेकिन - 'आप ऐसा विचार व्यक्त नहीं कर सकते'
ऐसा कहना गलत है !
अपने आपको लोकतान्त्रिक पार्टी कहने वाली पार्टी में ऐसा होना दुर्भाग्यपूर्ण है
प्रतिबन्ध तो इसका उपाय है ही नहीं......कहते हैं न कि विनाशा काले विपरीत बुद्धि .... मंथन चलने दीजिये इसी मंथन से कुछ विष और कुछ अमृत तो निकलेगा ही ...आपकी पोस्ट और उदाहरण दोनों सामयिक हैं ...बहुत बहुत शुक्रिया
भारत की ये विडम्बना है कि यहाँ जो कथनी है वो करनी नही,जितना सम्विधान के पन्नो पे लिखा है,बहौत कुछ ऐसा है जो उन पन्नो के बाहर आप बस "ढूँढते रह जाओगे".
आप का प्रष्न उचित है!
बी जे पी सोच रही है .... चलो अच्छा हुआ अपनों में कोई गैर तो निकला । और जसवंत सिह सोच रहे है, " की अपने ही गिराते है नशेमन पर बिजलियाँ ".
बहुत गहरे पानी की सोच है आपकी ....!!
make it more easy to understand all this akhilesh ji pls make it more easy and reader friendly yaad rakhiye ki aap apni baat vayang mein hi likhe kataksh mein nahin isse aap aur jayada logo tak phaunch payenge.....
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