Friday, October 23, 2009

रोज


रोज एक दुनिया लेती है जन्म
और रोज मर जाती है एक दुनिया।
रोज एक हौसला होता है बलंद,
और रोज ही पस्त होता है एक हौसला।
रोज उगती है एक उम्मीद,
और एक उम्मीद रोज दम भी तोड़तीहै।
रोज परवान चढ़ता है एक प्यार का बुखार,
और रोज उतर जाता है एक खुमार प्यार का।
तो ! कौन कहता है कि आयेगी एक दिन कयामत?
कयामत तो होती है रोज, क्यों कि -
रोज ही मरता है एक आदमी,
रोज उजड़ जाती है दुनिया किसी की,
किसी का हौसला,किसी कि उम्मीद, किसी का प्यार।
कोई नही आता है काम,
न कोई रहबर , न मसीहा, न सरकार।
फिर भी....
एक आदमी होता है फिर पैदा,
और जग जाती है,
एक उम्मीद, एक हौसला,एक प्यार।

20 comments:

VIMAL VERMA said...

अखिलेश जी बहुत दिनों एक बेहतरीन कविता आपके माध्यम से पढ़ने को मिली,वो कहते हैं न अपने नज़ीर अकबराबादी.....
"सब ठाठ पड़ा रह जाएगा जब लाद चलेगा बंजारा"
पता नही एक दिन में क्या क्या परवान चढ़ता है, फिर भी रहती हैं ये दुनियाँ !!!!

उम्दा सोच said...

अखिलेश जी आप का जवाब नहीं आप ने तो ब्रम्ह भेद खोल दिया ,साथ आप का पुराना पोस्ट याद आता है "कौन सच मानता है"!

अजय कुमार said...

रोज उजड़ जाती है दुनिया किसी की,
किसी का हौसला,किसी कि उम्मीद, किसी का प्यार।
कोई नही आता है काम,
जग जाती है,
एक उम्मीद, एक हौसला,एक प्यार।
बेहद दिलचस्प अंदाजे बयां

सदा said...

रोज एक दुनिया लेती है जन्म
और रोज मर जाती है एक दुनिया।
रोज एक हौसला होता है बलंद,
और रोज ही पस्त होता है एक हौसला।
रोज उगती है एक उम्मीद,
और एक उम्मीद रोज दम भी तोड़तीहै।

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना, हर पंक्ति बेहतरीन बन पड़ी है, बधाई ।

Urmi said...

बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने ! मेरे इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com

शोभना चौरे said...

रोज उगती है एक उम्मीद,
और एक उम्मीद रोज दम भी तोड़तीहै।
achi abhivykti

shashank said...

akhilesh jee,
Mai aur mera parivar apki likhne kee pratibha see parichit hai,apke kawita suchai kee kafi najdeek hoote hai, Ishi tarah achhi kawita likh tee rahiye,
shashank chaturvedi

MEERA CHATURVEDI said...

akhilash Jee,
roj parwan charta hai ake payar kaa bukhar aur roj uttar jata hai payar kaa bukhar,
ye line her insan kee sath jura hua hai, Roj hee marta hai ek admi such hai ake hee din mee jindagi kee rashtee per kafi uttar charave hoota hai,Ishmee Insan Kai bar mar ker jita hai,
Meera

जहान said...

bahut achhi aur marmsparshi rachana hai apki urdu ke alfazon ne inko aur bhi khoobsurat bna diya hai.

shikha varshney said...

bahut sahi kaha hai..badhai aapko.

Renu goel said...

तूफानों से लड़ती है कश्ती कि कोई मझधार है
किसी का प्यार और विशवास बना पतवार है
साँसों कि डोरी , ममता का बंधन
क़यामत तक ही है जीवन
सांसारिक नदिया के आर या पार है

रश्मि प्रभा... said...

कयामत तो होती है रोज,.....
bilkul sach, waqt to har pal karwaten leta hai

अपूर्व said...

क्या बात है..बेहद खूबसूरत कविता..और भाव..एक डायरी की तरह..जिसमे बस एक ही पन्ना है..और बार-बार पलटा जाता है.फिर-फिर पढ़ने का दिल करता है!!!!

अबयज़ ख़ान said...

अखिलेश जी बहुत बढ़िया... क्योंकि एक उम्मीद पर ही तमाम दुनिया कायम है।

Arvind Mishra said...

इसी जिजीविषा से ही तो मानुष कहाँ से कहां आ पहुंचा !

योगेन्द्र मौदगिल said...

सुंदर रचना..... निरन्तरता बनाए रखें..

Yogesh Verma Swapn said...

bahut khoob , bahut sunder abhivyakti.

Unknown said...

पब्लो पिकासो की गुएर्निका को पोस्ट कर आपने दिल जीत लिया, हिट्लर के खिलाफ पूरे साहस के साथ सामने आयी थी ये पेंटिंग... आपकी कविता अच्छी है, ढ़ेर सारी निराशाओं के जिक्र के बाद उम्मीद का एक छोटा सा झरोखा... हम सब जिसे बड़ा करने को तत्पर रहे तो उम्मीद है....

Anonymous said...

sahi hai hum roj mar kar phir janam lete hai....girte hai phir bhi chalna to nahi chodete....bahut hi acchi poem

zindagi ki kalam se! said...

bahut umda....subhan allah!